सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया।उन्होंने भगवान शिव को यज्ञ में नहीं बुलाया ।इस बात से दुखी होकर सती ने यज्ञ के हवन कुंड में कूदकर प्राणाहुति दे दी।भगवान शिव इस बात से दुखी होकर सती के शव को लेकर तांडव करने लगे। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर भंग कर दिया।जिससे सती की बाईं आंख यहीं गिरी थी और ताल में परिवर्तित हो गई।इस प्रकार यह ताल नैनीताल हो गया।यह मंदिर विदेशी सैलानियों का केंद्र बना हुआ है। यहां ताल में हाउसबोट लगे हुए हैं।पहाड़ों के बीच स्थित यह बड़ा ही सुन्दर मंदिर है।वर्तमान में यह मंदिर अमर उदय ट्रस्ट की देखरेख में है । 1880 के भूस्खलन से यह मन्दिर मलवे में दब गया था।श्री मोतीराम शाह के पुत्र श्री अमरनाथ शाह जी ने 1883ईस्वी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया।