नेहरूजी के निधन के बाद जब लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तब उनका कहीं कोई विरोध नहीं था। कांग्रेस ने उन्हें सर्वसम्मति से नेता मनोनीत किया। इस तरह भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में उनका सफर शुरू हुआ। हालांकि, प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्रीजी का पदार्पण इतना आसान भी नहीं था। पत्रकार कुलदीप नैयर के मुताबिक, नेहरूजी के कार्यकाल के अंतिम दिनों में शास्त्री को तिरस्कृत करना शुरू कर दिया गया था। कहा जाता है कि कई बार तो उन्हें नेहरूजी से मिलने के लिए भी इंतजार करना पड़ता था। 1964 के प्रारंभ में उन्होंने नैयर से कहा था कि अगर मैं अब भी दिल्ली में रहता हूं, तो यह तय है कि पंडितजी के साथ मेरा टकराव शुरू हो जाएगा। ऐसी कोई स्थिति आए, उससे पहले मैं राजनीति से संन्यास लेना पसंद करूंगा। ऐसी परिस्थितियों के बीच कुछ लोगों ने शास्त्रीजी से कहा कि नेहरूजी के व्यवहार में यह बदलाव इंदिरा गांधी के कारण आया है, जो उनसे बैर रखती थीं। शुरू में तो शास्त्रीजी ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन बाद में उन्हें अहसास हो गया कि यह बात सच थी। उन्हें इसका भी भान होने लगा कि उत्तराधिकारी के रूप में अब वह नेहरू की पहली पसंद नहीं थे।

इंदिरा उन्हें जानबूझकर नजरअंदाज करती थीं और अहम फाइलें नेहरू के पास खुद ले जाती थीं। ऐसे में एक दिन नैयर ने शास्त्रीजी से पूछा कि आपको क्या लगता है, नेहरू अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसे देख रहे हैं? इस पर शास्त्रीजी ने कहा था कि उनके दिल में उनकी सुपुत्री है, लेकिन यह आसान नहीं होगा। इस पर नैयर ने कहा कि लोग सोचते हैं, आप नेहरू के इतने बड़े भक्त हैं कि उनकी मौत के बाद आप खुद ही इंदिरा के नाम का प्रस्ताव करेंगे। इस पर शास्त्रीजी का जवाब था, ‘अब मैं इतना बड़ा साधु भी नहीं हूं। भारत का प्रधानमंत्री कौन नहीं बनना चाहता?’

शास्त्रीजी 19 माह प्रधानमंत्री रहे। इस कार्यकाल का ज्यादातर समय भारत-पाक के बीच मौजूद तनाव और दोनों देशों के रिश्तों को सामान्य करने के संघर्ष से जूझते हुए गुजरा। उन्होंने कहा था कि आपसी सहयोग न सिर्फ दोनों के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि वह एशिया में शांति स्थापना और समृद्धि लाने में भी कारगर होगा। इसके बावजूद पाकिस्तान धोखा देता रहा। 1965 के प्रारंभ में उसने कच्छ के इलाके पर दावा जताते हुए अपनी सेना भारत के क्षेत्र में भेज दी। तब शास्त्रीजी ने भी घोषणा की कि हम भले गरीबी में रह लें, लेकिन अपनी स्वतंत्रता और अखंडता से समझौता नहीं करेंगे।

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